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    ये है गोवर्धन पूजा का महत्व, चढ़ते हैं ये पकवान

    कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. दीपावली के अगले दिन मनाये जाने वाले इस त्योहार का विशेष महत्व ब्रज में देखने को मिलता है. गोवर्धन पूजा पर्व को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है. गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है और उन्हें पकवान खिलाए जाते हैं.

    विधि

    कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. दीपावली के अगले दिन मनाये जाने वाले इस त्योहार का विशेष महत्व ब्रज में देखने को मिलता है. गोवर्धन पूजा पर्व को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है. गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है और उन्हें पकवान खिलाए जाते हैं.
    (...तो इसलिए की जाती है खील-बताशे से देवी लक्ष्मी की पूजा)

    यह है गोवर्धन पूजा से जुड़ा महत्व
    कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था, जिसके नीचे गोप-गोपिकाएं सात दिन सुखपूर्वक रहे. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी. तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा. इस दिन गेहूं, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को चढ़ाया जाता है.

    (भोग में चढ़ाएं धनिये की पंजीरी)

    इस तरीके से बनाएं गोवर्धन और करें पूजा
    कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाये जाने वाले इस पर्व के दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सवों को भी मनाने की परम्परा है. इस दिन भगवान को तरह-तरह के व्यंजनों के भोग लगाए जाते हैं और उनके प्रसाद का लंगर लगाया जाता है. इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूलमाला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है. गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है. गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली चावल लगाकर पूजा के बाद परिक्रमा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है.

    ये है पूजा का शुभ मुहूर्त
    प्रातःकाल 06:28 से 08:43 बजे तक
    सायंकाल- 15:27 से 17:42 बजे तक

    ये है अन्नकूट का महत्व
    पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट पड़ा. इस दिन भगवान कृष्ण को छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है.
    (ये है पंजीरी और पंचामृत बनाने का सही तरीका)

    अन्नकूट पूजा विधि
    ब्रजवासियों का यह मुख्य त्योहार पूरे देश में धूमधाम और बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन भक्तगण छप्पन प्रकार के पकवान, रंगोली, पके हुए चावलों को पर्वत के आकार में बनाकर भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करते हैं. इसके बाद श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उनकी पूजा-वंदना की जाती है. उसके बाद अपने स्वजनों और अतिथियों के साथ बाल गोपाल को अर्पित इस महाप्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं और सब में बांटा जाता है.

    (धनतेरस पर बनाएं जाते हैं ये खास पकवान)

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