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    इसलिए बसंत पंचमी पर बनते हैं पीले रंग के पकवान

    भारत में मनने वाले हर त्योहार का अपना महत्व है. साल के शुरुआत में मकर संक्रांति के बाद बसंत पंचमी ऐसा त्योहार जिसे लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. इसमें बुद्धि, विद्या और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा की जाती है. युवा लड़कियां चमकीले पीले कपड़े पहनकर उत्सव में भाग लेती हैं. पीला रंग इस उत्सव के लिए एक विशेष अर्थ रखता है क्योंकि यह प्रकृति की प्रतिभा और जीवन की जीवंतता का प्रतीक माना जाता है.

    भारत में मनने वाले हर त्योहार का अपना महत्व है. साल के शुरुआत में मकर संक्रांति के बाद बसंत पंचमी ऐसा त्योहार जिसे लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. इसमें बुद्धि, विद्या और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा की जाती है. युवा लड़कियां चमकीले पीले कपड़े पहनकर उत्सव में भाग लेती हैं. पीला रंग इस उत्सव के लिए एक विशेष अर्थ रखता है क्योंकि यह प्रकृति की प्रतिभा और जीवन की जीवंतता का प्रतीक माना जाता है.
     वसंत पंचमी के मौके पर लोग न केवल पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, बल्कि देवी-देवताओं और दूसरों को पीले रंग के फूल भी देते हैं. वहीं इस त्योहार में एक विशेष प्रकार की केसर हलवा नामक मिठाई को आटा, चीनी , मेवे और इलायची पाउडर से बनाके खाते भी हैं. इस डिश में केसर के रेशों से स्वाद लाया जाता है जिसकी वजह से इसका पीला रंग आने के साथ-साथ एक भीनि-खुशबू और नाम भी दिया जाता है.

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    ये है इस त्योहार के रीति और रिवाज
    कुछ लोगों का ऐसा मानना होता है कि वसंत पंचमी देवी सरस्वती का जन्म दिन है इसलिये इस दिन को वगीश्वरी जयंती पंचमी भी कहा जाता है. वहीं कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि इस दिन देवी धरती पर दुर्गा के साथ दानव राजा महिशासुर का वध करने आईं थीं, जबकि कुछ लोग इस दिन ब्राह्मणों को भोज कराते हैं तो कुछ पित्रि-तरपण (पूर्वज पूजा) करते हैं और कुछ प्रेम के देवता कामदेव की पूजा करते हैं. देवी सरस्वती के चार हाथ होते हैं जो अहंकार, बुद्धि, सतर्कता और मन के प्रतीक हैं.

    बिहार और उड़ीसा के कुछ हिस्सों में इस दिन किसान हल की पूजा करते हैं और साथ ही एक बार फिर से खेतों की बुवाई शुरू करते हैं. बसंत पंचमी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन लोग पीले कपड़े पहनने के साथ-साथ पीले फूलों के साथ देवी की पूजा करते हैं और पीले रंग से घरों को सजाते सजाते भी हैं.

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    बेर और सांग्री मुख्य प्रसाद
    इस दिन बेर और सान्ग्री मुख्य प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं. बेर के पेड़ से बेर का फल मिलता है जो उत्तर और मध्य भारत में बहुतायत में उगता है. सान्ग्री वे बीन्स होते हैं जो मूली के बीज लिए हुए होते हैं. इन दोनों चीजों को एक थाली में पीली बर्फी या लड्डू, पान, नारियल और सरसों के कुछ पत्तों के साथ रखा जाता है. एक दूसरी थाली भी पूजा की सामग्रियों के साथ, जैसे पानी, सिंदूर और पीले फूल, के साथ तैयार की जाती है. घर की स्त्री ही एक जरी और गोटेवाली पीली पोशाक के साथ दोनों हाथों में पीली और लाल चूड़ियां पहनकर पूजा करती हैं और तब उत्सव शुरू होता है.

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    खान-पान का भी है महत्व
    सभी भारतीय त्योहारों का उपवास और अनुष्ठानों के बाद एक महत्वपूर्ण हिस्सा भोज का होता है. गृहिणियां गरम चूल्हों पर कुछ ऐसे स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं जो कुछ सबसे अधिक मांगों और स्वाद वाले होते हैं. बसंत पंचमी में पीला रंग प्रमुख होता है क्योंकि लोग केवल पीले रंग के कपड़े ही नहीं पहनते हैं बल्कि देवी को चढ़ाने के लिए बनने वाला भोजन भी पीले रंग का होता है. कुछ पारंपरिक घरों में पीले रंग की मिठाइयों का रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच लेन-देन भी होता है. उत्तर भारत के पसंदीदा हैं केसरी हलवा और मीठे चावल. जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश में मालपुआ बनाया जाता है. वहीं मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में बूंदी के लड्डू, खिचड़ी का प्रसाद ज्ञान की देवी को चढ़ाया जाता है. मिठाइयों को पीला बनाने के लिए उनमें चुटकीभर केसर डाला जाता है.

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