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    क्यों की जाती है भगवान धन्वन्तरि की पूजा, क्या होता है भोग-प्रसाद?

    दिवाली से दो दिन पहले ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस बार धनतेरस का त्योहार 13 नवंबर को पड़ रहा है. इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. 

    दिवाली से दो दिन पहले ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस बार धनतेरस का त्योहार 13 नवंबर को पड़ रहा है. इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा करने से रोगों से मुक्ति भी मिलती है.

    आरोग्य के देवता
    भगवान धन्वन्तरि कार्तिक त्रयोदशी को समुद्र मंथन के समय प्रकट हुए थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है. इन्हें आयुर्वेद का देवता कहा जाता है. भगवान धन्वन्तरि ने सभी औषधियों की खोज की थी. इतना ही नहीं, भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के चिकित्सक थे, इन्हें देव पद प्राप्त था. इसलिए पेड़-पौधों में जो रोगनाशक शक्ति पाई जाती है वो भगवान धनवंतरि की देन है.

    क्यों खरीदते हैं बर्तन
    समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि हाथ में अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे. इसलिए धनतेरस के दिन बर्तन और सोना-चांदी खरीदने की प्रथा है. हिंदु मान्यताओं के अनुसार इन्हें पीतल धातु काफी प्रिय है. इसलिए धनतेरस के दिन पीतल खरीदना भी शुभ माना जाता है. कहा जाता है, इस दिन बर्तन आदि खरीदने से इनमें तेरह गुणा वृद्धि होती है.

    भोग प्रसाद
    धनतेरस के दिन मां लश्रमी और भगवान धन्वन्तरि के चरणों में साबुत धनिया रखकर विधि पूर्वक पूजा की जाती है. इसके बाद धनिया को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि साबुत धनिया रख कर पूजा करने से सफलता की प्राप्ति होती है.

    धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 32 मिनट से शुरु होकर 05 बजकर 59 मिनट तक ही रहेगा. कुल अवधि केवल 27 मिनट तक की रहेगी. यम का दीपक आप रात 8 बजे तक भी जला सकते हैं. 

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