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    दुनिया की सबसे बड़ी चालू रसोई, लकड़ी की आग पर पकता है प्रसाद

    हर साल ओडिशा में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा उत्सव में शामिल होते हैं. यह प्रसिद्ध रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है. इस वर्ष रथ यात्रा 4 जुलाई को निकाली जाएगी.

    हर साल ओडिशा में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा उत्सव में शामिल होते हैं. यह प्रसिद्ध रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है. इस वर्ष रथ यात्रा 4 जुलाई को निकाली जाएगी.

     इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों की संख्या में लोग ओडिशा, के पुरी जाते हैं. रथ यात्रा के कारण इसकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है, लेकिन एक और खास बात है जो बहुत रोचक है, वो है जगन्नाथ पुरी की रसोई, जहां भगवान के लिए प्रसाद पकाया जाता है. डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराने मशहूर इस मंदिर में 32 कमरों में भोग प्रसाद पकाया जाता है. इन रसोइयों में 750 से भी ज्यादा चूल्हे हैं जिन पर आज भी लकड़ी से आग जलाई जाती है. रसोई में एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है. जबकि रथ यात्रा के दिन रसोई में 1 लाख 14 हजार लोग भोग बनाने और दूसरी व्यवस्थाओं में शामिल होते हैं. जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत लगते हैं.

    जबकि बाकी दिनों में प्रसाद बनाने में हजार लोग शामिल होते हैं. इनमें 500 रसोइयों और उनके 300 सहयोगी भी होते हैं. 200-250 सेवक सब्जियां, फलों, नारियल काटने और मसाला कूटने में लगे रहते हैं. इन सब चीजों के साथ यह प्रसाद मिट्टी की 700 हांडियों में पकाया जाता है. इन हांडियों को अटका कहा जाता है. किसी-किसी चूल्हे में एक साथ सात-सात हांडियां चढ़ाई जाती हैं. प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल का भोग प्रसाद बनता है. इनमें खासियत यह है कि सबसे पहले सबसे ऊपर वाली हांडी का प्रसाद पकता है उसके बाद नीचे वाली हांडियों का. इसके पीछे वहां के लोगों में मान्यता है कि प्रसाद मां लक्ष्मी की देखरेख में बनता है. खास बात यह भी कि भोग-प्रसाद भी कुएं के पानी से बनता है. रसोई घर के पास दो कुएं हैं. एक नाम गंगा और दूसरी कुआं यमुना नाम से जानी जाती है. पूरा प्रसाद सिर्फ इन्हीं कुओं के पानी से बनता है.

    यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी और चालू रसोई मानी जाती है. मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित इस रसोई में भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है. इनमें दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि से महाप्रसाद बनता है. रोजाना मीठे में कम से कम से 10 चीजें शामिल होती हैं. रोजाना यहां 56 भोग तैयार होता है. लहसुन-प्याज पूरी तरह निषेध है.

    मीठा भोग प्रसाद तैयार करने के लिए शक्कर अच्छा गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है. लहसुन-प्याज के साथ ही आलू, टमाटर और फूलगोभी का इस्तेमाल नहीं होता. यहां तैयार किए जाने वाले भोग प्रसाद को जगन्नाथ वल्लभ लाडू, माथपुली जैसे कई अन्य नाम रखे जाते हैं. तैयार भोग को अब्धा कहा जाता है जिसे सबसे पहले भगवान जगन्नाथ को महाप्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इसके बाद माता बिमला को चढ़ाया जाता है. भगवान जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है. यही कारण है कि यहां काफी मात्रा में भोग प्रसाद बनाया जाता है. खास बात यह भी है कि भगवान जगन्नाथ की रसोई का राशन कभी खत्म नहीं होता है. ज्यादातर राशन दान से आता है.

    Photo- Prateek Pattanaik

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