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    ऐसे मनाई जाती है शीतला अष्टमी, जानिए क्या बनता है खास

    इस साल 16 मार्च सोमवार को शीतला अष्टमी है. यह होली के आंठवे दिन मनाई जाती है. इसे कई जगह बासौड़ा भी कहते हैं.

    इस साल 16 मार्च सोमवार को शीतला अष्टमी है. यह होली के आंठवे दिन मनाई जाती है. इसे कई जगह बासौड़ा भी कहते हैं. बासौड़ा यानी इस दिन शीतला माता को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है और खुद भी बासी खाना ही खाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए.  

    अष्टमी तिथि 16 मार्च की सुबह 3 बजकर 19 मिनट से आरंभ होकर 17 मार्च सुबह 2 बजकर 29 मिनट तक रहेगी. पूजा का शुभ मुहूर्त 16 मार्च की सुबह 6:29 से लेकर शाम के 6:30 तक ही रहेगा. यह उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में बहुत की जाती है.

    शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना गया है. माता को ठंडी चीजें बहुत पसंद हैं. इसलिए उन्हें बासी और ठंडी चीजों का ही भोग लगाया जाता है. सब कुछ एक दिन पहले यानी सप्तमी की रात को ही बना लिया जाता है.

    भोग में खास तौर पर मीठे चावल तो बनाए ही जाते हैं. चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. आप चाहें तो बासी चावल में बूरा भी मिला सकते हैं. मीठे चावल के अलावा पूरी, पुआ, हलवा आदि भी रखा जाता है. भिगोई हुई काली उडद और चने की दाल भी थाली में रखी जाती है. चूंकि दही ठंडी होता है तो प्रसाद में दही भी रखा जाता है. इनके साथ ही ठंडे पानी का लोटा भी रखा जाता है.

    सुबह-सुबह नहा धोकर शीतला माता की विधिवत पूजा कर उनको भोग लगाया जाता है. पूजा के बाद सबसे अंत में जल चढ़ाया जाता है. बचे हुए पानी को घर में छिड़ककर बाकी को पूजा स्थान पर रख दिया जाता है. बची हुई पूजा की सामग्री को गाय या ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए.
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