जानिए छ्ठ पर्व के दूसरे दिन कैसे मनाया जाता है 'खरना'

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महापर्व छ्ठ के दूसरे दिन की जाती है खरना की तैयारी. इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को खीर-पूरी, पान-सुपाड़ी और केले का भोग लगाकर परिवार और आस-पड़ोस के सभी लोगों में प्रसाद बांटती हैं. छठी मइया को केले के पत्ते पर प्रसाद चढ़ाया जाता है.
महापर्व छ्ठ के दूसरे दिन की जाती है खरना की तैयारी. इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को खीर-पूरी, पान-सुपाड़ी और केले का भोग लगाकर परिवार और आस-पड़ोस के सभी लोगों में प्रसाद बांटती हैं. छठी मइया को केले के पत्ते पर प्रसाद चढ़ाया जाता है.

खरना का मतलब होता है पूरे दिन का उपवास. व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष इस दिन पानी भी नहीं पीते हैं. इस दिन का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही पकाया जाता है.

मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर दूध, गुड़ व साठी के चावल से खीर और गेहूं के आटे की रोटी का प्रसाद बनाया जाता है. नए चूल्हे के इस्तेमाल के पीछे मान्यता यह है कि चूल्हा बिल्कुल साफ होना चाहिए और उसपर पहले से किसी भी तरह का कोई भी खान-पान न पकाया गया हो. यानी चूल्हे पर किसी भी तरह की नमक वाली चीजें न बनी हो और मांसाहार भी न पकाया गया हो.

इसके अगले दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन व्रती और घर के सभी लोग घाट पर जाकर सूर्य भगवान की उपासना करते हैं.