निर्जला एकादशी का मुहूर्त, व्रत करने और खोलने का सही तरीका

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आज निर्जला एकादशी है. साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है.
आज निर्जला एकादशी है. साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है.
उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन मानी जाती है. निर्जला एकादशी व्रत को करते समय श्रद्धालुगण भोजन ही नहीं बल्कि पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं. इसे 'पांडव एकादशी' के नाम से भी जाना जाता है.

क्या लाभ मिलता है?
जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता है. इस दिन अन्न, वस्त्र, जौ, गाय, जल, छाता, जूता आदि का दान देना शुभ माना जाता है. Nirjala ekadashi के दिन ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करने के बाद भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य आदि चीजें चढ़ाएं. रात को दीपदान करें.

क्या खाकर व्रत खोला जाता है?
इस दिन तुलसी और बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए. भगवान विष्णु के भोग के लिए तुलसी के पत्ते एक दिन पहले ही तोड़कर रख लेना चाहिए या फिर तुलसी के गिरे हुए पत्तों को साफ जल से धोकर पूजा में उपयोग करना चाहिए. इस दिन व्रत में खायी जाने वाली चीजें खाकर व्रत खोला जाता है, लेकिन चावल या चावल से बनी चीजें भूलकर भी नहीं खाना चाहिए. किसी भी प्रकार के नशे से बचना चाहिए. निर्जला एकादशी पर सुबह देर तक न नहीं सोना. दिन में और शाम को भी नहीं सोना चाहिए.

निर्जला एकादशी के व्रत का समापन कैसे करें?
एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी को प्रातः स्नान करके सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए. इसके बाद निर्धनों को अन्न, वस्त्र और जल का दान करें. फिर नींबू पानी पीकर व्रत समाप्त करें. पहले हल्का भोजन करेंगे तो उत्तम होगा. क्योंकि एकदम से भारी चीजें खा लेंगे तो यह नुकसान पहुंचा सकता है.

क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी?
निर्जला एकादशी से संबंधित एक पौराणिक कथा के अनुसार इसे पांडव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पांडवों में दूसरा भाई भीम यानी भीमसेन खाने-पीने का बहुत शौकीन था और अपनी भूख को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं था. इसी कारण वह एकादशी व्रत को नहीं कर पाता था. भीम के अलावा बाकि पांडव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे. भीम अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान था. भीम को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है. इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है. इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी.

निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 1 जून की दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से शुरु हो चुकी है जो आज यानी 2 जून को 12 बजकर 4 मिनट तक रहेगी. 3 जून की सुबह 5 बजकर 23 मिनट से लेकर 8 बजकर 10 मिनट के बीच पारण किया जा सकता है.