शरद पूर्णिमा को चांद की रोशनी में क्यों रखी जाती है खीर?
दरअसल खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखने वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं. शरद पूर्णिमा की रात को चांद धरती को सबसे करीब होता है. कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा को चांद 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. इस बार शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को है.
वहीं अगर रिसर्च की मानें तो दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है जो कि चांद की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है. यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है. शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है. इसके सेवन से विषाणु दूर रहते हैं.
धर्म ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन श्री कृष्ण गोपियों के साथ रास लीला भी करते हैं. वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने आती हैं. इसलिए आसमान पर चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है. शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात में जो भक्त भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है.
ज्ञाताओं के अनुसार पूरे साल में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है. रात में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखकर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के रूप में खाते हैं. इस अवसर पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना हुआ है. ग्रहों और नक्षत्रों का यह संयोग बहुत ही शुभ है जिसमें धन लाभ संबंधी कोई भी काम करना शुभ होगा.