इस मुहूर्त में करें कलश स्थापना, पूरी होंगी मुरादें
विधि
कलश सथापना के पहले गंगाजल से पूजा के स्थान को पवित्र करते है. कलश में सुपाड़ी, मुद्रा और सात प्रकार कि मिट्टी रखी जाती है. कलश में आम के पत्ते डाले जाते हैं. नारियल को लाल चुनरी में लपेट कर रखा जाता है और कलश के नीचे जौ रखा जाता है, जिसको नवरात्र के आखरी दिन दशमी को काटा जाता है. मां दुर्गा की प्रतिमा को पूजा स्थल के ठीक बीचोबीच स्थापित करना चाहिए.
व्रत का संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी या फिर मिट्टी के कलश, पात्र में जौ बोया जाता है. इसी वेदी पर घट यानी कलश की स्थापना की जाती है. इस दिन मां दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय अखंड ज्योत जलाई जाती है. यह अखंड ज्योत व्रत के पूर्ण होने तक जलते रहना चाहिए.
कलश स्थापना के बाद भगवान श्री गणेश और मां दुर्गा जी की आरती गाकर नवरात्रि का व्रत आरंभ किया जाता है. कुछ श्रद्धालू पूरे नौ दिन का व्रत रखते हैं, जिसके कलश स्थापना के वक्त ही संकल्प लिया जाता है कि व्रत नौ दिन तक रखना है अथवा कुछ प्रमुख दिनों तक.
घट स्थापना मुहूर्त- प्रात: 6:45 से प्रात: 7:45 तक.
घट स्थापना मुहूर्त- दिन 11:17 से दिन 12:17 तक.
वैधृति योग- रात 9 बजकर 48 मिनट से शुरू होगा. इसके बाद विष्कुम्भ योग है.
ववकरण- दोपहर 3 बजकर 23 मिनट तक.
सुबह घट स्थापना का शुभ मुहूर्त- 6:30 से लेकर 9 बजे तक.
अभिजीत मुहूर्त-11:25 से लेकर 12:35 तक.
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:28 से लेकर 3:18 तक.
प्रजापति मुहूर्त- सुबह 7:23 से पहले.