आखिरकार ओडिशा ने जीत ली रसगुल्ले की जंग, मिला GI टैग

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आखिर कार ओडिशा ने रसगुल्ले की लड़ाई में बाजी मार ली. भारत सरकार ने ओडिशा को आधारिकारिक रूप से रसगुल्ला का जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग की मान्यता दे दी. जीआई मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई रेजिस्ट्रार की तरफ से यह जानकारी दी गई है.

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आखिर कार ओडिशा ने रसगुल्ले की लड़ाई में बाजी मार ली. भारत सरकार ने ओडिशा को आधारिकारिक रूप से रसगुल्ला का जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग की मान्यता दे दी. जीआई मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई रेजिस्ट्रार की तरफ से यह जानकारी दी गई है.
इसके साथ ही स्पष्ट हो गया है कि ओडिशा का रसगुल्ला यहां के भौगोलिक और सांकेतिक स्थिति के साथ जुड़ा हुआ है. ओडिशा की जगन्नाथ संस्कृति के साथ रसगुल्ले का प्राचीन संपर्क है. ओडिशा की परंपरा भी रसगुल्ले से जुड़ी है. यह रसगुल्ला भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में भी चढ़ता है. इसी को आधार मानकर भी ओडिशा सरकार ने इसे चैलेंज किया था.

गौरतलब है कि 14 नवंबर, साल 2017 में बंगाल को जीआई टैग दे दिया गया था, जिसे लेकर ओडिशा ने आपत्ति जताई थी और जीआई अपने पक्ष में देने का आवेदन भी किया था. तब ओडिशा के वित्त मंत्री शशि भूसन बहेरा ने कहा था कि, 'पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले का जीआई टैग मिलना ओडिशा और यहां के लोगों के साथ अन्याय है. रसगुल्ला हमारी जगन्नाथ संस्कृति से जुड़ा है.

हम फिर इसके खिलाफ के दायर करेंगे.' तकरीबन 2 साल तक मालिकाना हक की लड़ाई ओडिशा ने लड़ी. जिसके बाद जीआई टैग ओडिशा को मिल गया. इसके बाद 2018 फरवरी महीने में ओडि़शा सूक्ष्म उद्योग निगम की तरफ से चेन्नई में मौजूद जीआइ कार्यालय में विभिन्न प्रमाण के साथ नथीपत्र दाखिल किया गया था. इसके अब जाकर 29 जुलाई 2019 को ओडिशा के रसगुल्ला को जीआई टैग मिला है. ओडिशा के रसगुल्ला को जीआइ टैग मिलने के बाद राज्य वासियों में खुशी की लहर है.

रसगुल्ले को अपना बनाने की लड़ाई इन दो राज्यों में वर्षों से चल रही थी. दोनों ही राज्यों ने कानूनी दांवपेच भी लड़ाए थे. दोनों राज्य यह दावा कर रहे थे कि रसगुल्ले का आविष्कार उनके यहां हुआ है. साल 2017 में जीआई ने ओडिशा के आवेदन को खारिज कर दिया था. इसके बाद रसगुल्ले पर बंगाल का एकाधिकार हो गया था. अधिकतर लोगों को यही पता था कि रसगुल्ला पश्चिम बंगाल का है जबकि कुछ का अभी भी मानना था कि यह मूलतः ओडिशा का ही है.

क्या होता है जीआई टैग
किसी भी उत्पाद का जीआई टैग उसके स्थान विशेष की पहचान बताता है. दरअसल, यह विवाद तब शुरू हुआ जब पहाल में मिलने वाले रसगुल्लों को लेकर ओडिशा सरकार ने जीआई टैग हासिल करने का प्रयास किया था. यहां से इस मिठाई को पश्चिम बंगाल भी सप्लाई किया जाता रहा है. इस पर पश्चिम बंगाल और ओडिशा सरकार के मंत्री आमने-सामने भी आए थे. पश्चिम बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला का कहना था कि बंगाल रसगुल्ले का आविष्कारक है. मोल्ला ने इसके पीछे ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देकर कहा था कि बंगाल के विख्यात मिठाई निर्माता नबीन चंद्र दास ने वर्ष 1868 से पूर्व रसगुल्ले का आविष्कार किया था. इसके जवाब में ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने 2015 में मीडिया के समक्ष दावा किया था कि 600 वर्ष पहले से उनके यहां रसगुल्ला मौजूद है. उन्होंने इसका आधार बताते हुए भगवान जगन्नाथ के भोग खीर मोहन से भी जोड़ा था. ओडिशा के इस दावे के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कही थी.