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    तो ऐसे हुआ रसगुल्ले का आविष्कार

    विधि

    मीठा खाने की बात हो तो मन में बंगाली मिठाइयां तैरने लगती हैं और बंगाली मिठाइयों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली मिठाई है रसगुल्ला. पर क्या आपने कभी सोचा है कि रसगुल्ला का आविष्कार कैसे हुआ. पहली बार इसे किसने बनाया. क्या यह भारत की मिठाई है या फिर पुर्तगाली या अंग्रेज, इसकी रेसिपी लेकर आए. आइए हम आपको बताते हैं चाशनी में डूबे रहने वाले रसगुल्ले की कहानी.



    सन् 1498 में वास्को डिगामा भारत आया. इसके बाद सन् 1511 में मलक्का की विजय के बाद पुर्तगाली व्यापारी का बंगाल आए. व्यापार को लेकर धीरे-धीरे पुर्तगलियों ने बंगाल चित्तगावों में अपने कारखाने लगाए. कुछ वर्षों में ही इन्होंने व्यापार का साम्राज्य खड़ा कर लिया और संख्या के लिहाज से ये 5 हजार से ज्यादा हो गए. पुर्तगालियों को पनीर खाना पसंद था. वे इसकी रेसिपी लेकर आए. उनके व्यापार को लेकर बंगाल में भी पनीर बनाया जाने लगा. भारतवासियों को भी बढ़ते व्यापार के कारण दूध को फाड़कर छेना बनाने से कोई आपत्ति नहीं थी. छेने की बढ़ती मांग को देखते हुए बंगाली में मोइरा कहे जाने वाले हलवाइयों ने छेने के साथ कई तरह के प्रयोग करना भी शुरू किए. (ये है चिकन के बटर चिकन बनने की कहानी )



    तब नोबिन चंद्र दास नाम के मोइरा हलवाई कलकत्ता के बाग बाजार में अपनी मिठाइयों के लिए काफी फेमस थे. उनकी दास स्वीट्स नाम की दुकान हर किसी के जुबान पर थी. पुर्तगालियों में पनीर को लेकर बढ़ती डिमांड को देखते हुए उन्होंने सन् 1868 में छेने से मिठाई बनाने को लेकर एक प्रयोग किया. जिसमें उन्होंने दूध से छेना बनाया फिर उसे गोल आकार देकर चाशनी में उबाला. छेना के ऐसे इस्तेमाल और इससे बनी मिठाई लोगों को काफी पसंद आई. इस तरह रसगुल्ले का आविष्कार हुआ. तब से रसगुल्ला लोगों को इतना पसंद आया कि यह मिठाइयों का राजा बन गया. रसगुल्ले का आविष्कार करने के कारण नोबिन चंद्र दास को रसगुल्ले का कोलंबस कहा भी जाने लगा. (रसगुल्ला किसका? ओडिशा का या पश्चिम बंगाल का)
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