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    अहोई अष्टमी: इन चीजों से करें पूजा, लंबी रहेगी पुत्र की आयु

    आज है अहोई अष्टमी. इस दिन माताएं अपने पुत्रों की भलाई के लिए उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (सांझ) तक उपवास करती हैं. शाम के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है. (कुछ महिलाएं चंद्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत तोड़ती हैं, लेकिन इसका अनुसरण करना कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय आम रातों की अपेक्षा देर से होता है.)

    आज है अहोई अष्टमी. इस दिन माताएं अपने पुत्रों की भलाई के लिए उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (सांझ) तक उपवास करती हैं. शाम के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है. (कुछ महिलाएं चंद्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत तोड़ती हैं, लेकिन इसका अनुसरण करना कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय आम रातों की अपेक्षा देर से होता है.)
    अहोई अष्टमी व्रत का दिन करवा चौथ के चार दिन बाद पड़ता है. करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है. अहोई अष्टमी को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवां दिन होता है, के दौरान किया जाता है.
    कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जला व्रत रखकर शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं. पुतली के पास ही स्याउ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं. इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा तारों को करवा से अर्घ्य दिया जाता है. यह व्रत करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को पड़ता है. इस दिन पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना से यह व्रत करती हैं.
    ऐसे की जाती है पूजा
    पूजा स्थान पर अहोई माता का चित्र रखें या फिर दीवार पर उनकी आकृति बनाकर उसकी पूजा करें. पूजा स्थान को साफ कर वहां कलश की स्थापना करें. व्रती महिलाएं इस दिन सुबह उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं. अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहा जाता है. इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के पश्चात सासु मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. पूजन के बाद अहोई माता को दूध और चावल का भोग लगाया जाता है. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें और सुनाएं.

    जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें. इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें.

    इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसको गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें. सास को रोली तिलक लगाकर चरणस्पर्श करते हुए व्रत का उद्यापन करें.
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