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    बादशाह अकबर भी थे कुल्फी के शौकीन...

    विधि

    गर्मियों के मौसम में कुल्फी खाना किसे पसंद नहीं आता, नाम सुनते ही लगता है कि बस झटपट मिल जाए. आज के जमाने में जब मन चाहे तभी कुल्फी का मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं है, बस घर से बाहर निकलो और अपने पसंदीदा फ्लेवर की कुल्फी मिनटों में ले आओ.पर क्या कभी आपने सोचा है कि अकबर के जमाने में यानि मुगल काल में लोग तपती झुलसती गर्मी में क्या खाते होंगे? उन्हें कैसे ठंडक मिलती होगी?

    चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि उस समय में भी कुल्फी ही उन्हें राहत देती थी. जी हां, कुल्फी. कुल्फी का जन्म तो मुगल काल में ही हो गया था. उस समय भी बादशाह अकबर कुल्फी का आनंद उठाते थे और वह भी बर्फ में जमी हुई कुल्फी. जानें कुल्फी के आविष्कार की कहानी.

    'कुल्फी' एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है 'कोन के आकार का कप'. अकबार काल में सिपाही हाथी और घोड़ों में सवार आगरा से निकल 500 मील की दूर तय कर सीधे हिमालय से बर्फ लाते थे. हर 18 मील की दूरी पर हाथी, घोड़े और सिपाहियों की टुकड़ी को बदल दिया जाता था.

    बुरादे और जुट के कपड़े में लपेटकर बर्फ लाई जाती थी और दूरी की वजह से काफी सारी बर्फ पिघल भी जाती थी. सबसे पहले बर्फ का प्रयोग शरबत को ठंडा करने के लिए किया गया था. धीरे-धीरे बादशाह अकबर और उनकी बेगमों के लिए बर्फ का इस्तेमाल कुल्फी जमाने के लिए भी किया जाने लगा और समय के साथ कुल्फी का नाम पूरे भारत में मशहूर हो गया.

     

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