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    बिना छठ व्रत के भी चढ़ाना चाहिए दूध, जानिए ऐसा क्यों?

    छठ का व्रत करना एक तपस्या है जिसमें लंबे समय तक व्रत और चार दिनों तक नियम-निष्ठा करना पड़ता है. यही नहीं इसके अलावा इसकी तैयारी एक-दो हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है.

    छठ का व्रत करना एक तपस्या है जिसमें लंबे समय तक व्रत और चार दिनों तक नियम-निष्ठा का पालन करना पड़ता है. यही नहीं इसके अलावा इस महापर्व की तैयारी एक-दो हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है. जैसे गेहूं धोना और सुखाना, चूल्हा बनाना, मिट्टी के अलग-अलग तरह के दीये बनाना आदि. यही कारण है कि हर कोई इस व्रत को नहीं कर पाता है, लेकिन जो इस व्रत को नहीं कर पाते हैं वह भी छठ के दिन सूर्य की आराधना कर सकते हैं. इससे भी लाभ मिलता है और परिवार में सुख-शांति आती है.
    अगर आप व्रत नहीं करते तो भी छठ के दिन घाट पर जाकर व्रत किये हुए (पानी में खड़े) स्त्री/पुरुष को अपने फल की टोकड़ी और घर पर बनाए हुए प्रसाद को देकर सूर्य की प्राथना कर सकते हैं. इसके अलावा उसी घाट पर दूध चढ़ाते हुए सूर्य नमस्कार कर सकते हैं. यही नहीं इस पर्व पर आप भी अपने घर में ठेकुआ , खीर-पूरी आदि छठी पकवान बनाकर इस पर्व में अपनी खुशिया शामिल कर सकते हैं. साथ ही साथ महिलाएं व्रत कर रही महिलाओं की मदद भी कर सकती हैं. इससे भी उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है.

    डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है
    तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी और खजूर भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ या बिसवा, कसर भी कहा जाता है, बनाते हैं. इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है. शाम को बांस की टोकरी (दौरा) और अर्घ्य का सूप सजाया जाता है. इसमें मुख्य रूप से केला, अनानास, बड़ा मीठा निंबू ,सेब, सिंघाड़ा, मूली, अदरक पत्ते समेत, गन्ना, कच्ची हल्दी नारियल आदि रखते हैं. इसके बाद जिस व्यक्ति ने व्रत ले रखा हो उसके साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग सूर्यास्त के सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं. सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं. इसलिए छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है. सुबह सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और शाम में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्ध्य देकर दोनों से प्रार्थना की जाती है. सभी छठव्रती नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं. सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है व छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है. सबसे कठिन व्रत कहा जाने वाला दंड देना भी इसमें शामिल है. इसे करने वाले शाम और सुबह अपने घर से पूजा होने की जगह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचते हैं और जल स्रोत की परिक्रमा करते हैं. दंडवत का मतलब जमीन पर पेट के बल सीधा लेटकर प्रणाम करना होता है. व्रती घर से लेकर घाट तक ऐसे ही प्रणाम करता जाता है.

    ये है उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
    चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती वहीं फिर से एकत्रित होते हैं जहां उन्होंने पिछली शाम को अर्घ्य दिया था. यहां पर वे लोग पिछले शाम की गई प्रक्रिया को फिर दोहराते हैं. अंत में जिस व्यक्ति ने व्रत ले रखा हो वह कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं. सके बाद छठ का प्रसाद घाट और अपने आस-पड़ोस लोगों को बांटा जाता है.

    छठ पूजा का शुभ मुहूर्त
    इस साल 2 नवंबर को छठ के दिन सूर्योदय का समय 6 बजकर 34 मिनट पर अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त है. जबकि सूर्यास्त के बाद 5:36 बजे अर्घ्य देने का समय है. षष्ठी तिथि आरंभ 00:51 (2 नवंबर 2019), षष्ठी तिथि समाप्त 01:31 (3 नवंबर 2019).
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