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    क्या होती है हरतालिका तीज ? क्या खाकर खोला जाता है व्रत?

    आज यानी 21 अगस्त को हरतालिका तीज है. यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में मुख्यरूप से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला (बिना कुछ खाए-पीए) रहकर व्रत करती हैं. इस दिन भगवान शंकर-पार्वती की बालू की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है. घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाया जाता है.

    विधि

    आज यानी 21 अगस्त को हरतालिका तीज है. यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में मुख्यरूप से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला (बिना कुछ खाए-पीए) रहकर व्रत करती हैं. इस दिन भगवान शंकर-पार्वती की बालू की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है. घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाया जाता है.

    एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनाई जाती है. एक खास तरह के मंडप में इन देवी-देवताओं को बिठाया जाता है जिसे फुलेहरा या फुलेरा कहा जाता है. मध्यभारत में फुलेहरा में भगवान गणेश की मुख्यतौर पर पूजा होती है क्योंकि अगले दिन गणेश भगवान की स्थापना होती है. इस दिन से गणपति विराजते हैं और सात दिन तक उनकी पूजा की जाती है.

    इस व्रत का पूजन रात्रि भर चलता है. इस दौरान महिलाएं जागरण करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं. प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है.

    हरतालिका तीज नाम के पीछे क्या है कहानी?
    हरतालिका दो शब्दों से बना है, हरित और तालिका. हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका अर्थात् सखी. यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, जिस कारण इसे तीज कहते हैं. इस व्रत को हरतालिका इसलिए कहा जाता है, क्योंकि पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी. जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था.

    हरतालिका तीज की पूजन सामग्री:
    गीली मिट्टी या बालू रेत. बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल, अकांव का फूल, मंजरी, जनैव, वस्त्र व सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते आदि. पार्वती के लिए सुहाग सामग्री-मेंहदी, चूड़ी, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग आदि. नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध, शहद व गंगाजल पंचामृत के लिए.

    कैसे होती है पूजा:
    हरतालिका पूजन प्रातः काल और प्रदोष बेला होती है. पूजन के लिए मिट्टी अथवा बालू से शिव पार्वती जी और गणेश जी की मूर्ति बनाई जाती है. फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता है. फिर रंगोली डालकर चौकी रखी जाती है. चौकी पर स्वास्तिक बनाकर थाली के साथ केले का पत्ता रखकर उसमें भगवान स्थापित किए जाते हैं. फिर कलश तैयार किया जाता है. सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. कलश को जल से स्नान कराकर के रोली चंदन अक्षत चढ़ाया जाता है. फिर गणेश जी का पूजन किया जाता है. इसके बाद शिव और पार्वती जी का पूजन कर पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है. अगले दिन प्रातः काल पूजन करके पार्वती जी को सिंदूर अर्पित करके सिंदूर लगाया जाता है.

    क्या खाकर खोला जाता है व्रत:
    यह व्रत दूसरे व्रत से बिलकुल अलग होता है. इसमें 16 से 18 घंटे तक व्रती निर्जला व्रत रखती हैं. पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद के रूप में मिला मौसमी फल, खीरा और मिठाइयां खास तौर पर खाया जाता है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह व्रत कढ़ी-चावल खाकर तोड़ा जाता है जबकि बिहार के कुछ हिस्सों में जौ के सत्तू से बने हलवे से खोला जाता है. अगर हलवा न बने तो सत्तू में गुड़ और घी मिलाकर खाया जाता है. इस दिन मुख्य रूप से मावा गुझिया, सूजी गुझिया, ठेठरा, खुरमी आदि मुख्य रूप में बनते हैं.

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