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    क्यों छलनी से चांद देखने के बाद ही खोला जाता करवा चौथ का व्रत?

    सुहागिनें हर साल पति की लंबी उम्र की कामना में करवा चौथ (Karwa chauth 2019) का व्रत रखती हैं. उत्तरी भारत में तो इसे किसी त्योहार की तरह ही मनाया जाता है. करवाचौथ के व्रत को बेहद कठिन माना जाता है. इस दिन वो बिना पानी पिए व्रत रखती हैं. इतने कठिन व्रत को वो पूरी श्रद्धा से रखती हैं. शाम को छलनी/चलनी से चांद देखने के बाद व्रत खोलती है. पहले चलनी से चांद देखा जाता है फिर पति का चेहरा. पति के हाथों से जल ग्रहण करने के बाद ही पूरा होता है उनका यह करवा चौथ का व्रत. पर क्या कभी सोचा है कि आखिर छलनी से हीं क्यों चांद देखा जाता है? नहीं न. इसके पीछे एक रोचक कहानी है.

    सुहागिनें हर साल पति की लंबी उम्र की कामना में करवा चौथ (Karwa chauth 2019) का व्रत रखती हैं. उत्तरी भारत में तो इसे किसी त्योहार की तरह ही मनाया जाता है. करवाचौथ के व्रत को बेहद कठिन माना जाता है. इस दिन वो बिना पानी पिए व्रत रखती हैं. इतने कठिन व्रत को वो पूरी श्रद्धा से रखती हैं. शाम को छलनी/चलनी से चांद देखने के बाद व्रत खोलती है. पहले चलनी से चांद देखा जाता है फिर पति का चेहरा. पति के हाथों से जल ग्रहण करने के बाद ही पूरा होता है उनका यह करवा चौथ का व्रत. पर क्या कभी सोचा है कि आखिर छलनी से हीं क्यों चांद देखा जाता है? नहीं न. इसके पीछे एक रोचक कहानी है.

    करवा चौथ: क्या है सरगी, बाया और पोइया का महत्व

    क्या होती है सरगी
    सरगी करवा चौथ के दिन दिया जाने वाला मुख्य भोजन होता है. सूर्योदय से पहले यानी लगभग 4-5 बजे सास अपनी बहू को सरगी देती हैं. सरगी के साथ ही सास अपनी बहू भरपूर आशीर्वाद भी देती है जिससे बहू अपना ये व्रत अच्छे से पूरा कर सके. इसके बाद पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और चंद्र उदय के बाद चंद्रमा की पूजा कर इसका समापन किया जाता है.
    जानिए क्या होता है करवा चौथ की सरगी की थाली में शामिल

    क्या होता है सरगी में शामिल
    सरगी की थाली में मिठाई, मठरी, फल, ड्राई फ्रूट्स, पूरी, कपड़े, गहने, सेवईं रखे जाते हैं. इन सभी चीजो को थाली में रखने का अपना-अपना महत्व होता है.
    करवा चौथ का व्रत खोलने के बाद ये खाएं

    क्यों देखते है छलनी से चांद
    इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार किसी बहन को उसके भाइयों ने स्त्रेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक दिखाकर भोजन करवा दिया. इस तरह उसका व्रत भंग हो गया. इसके पश्चात उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्त हुई.

    उस करवा चौथ पर कन्या ने हाथ में छलनी लेकर चांद के दर्शन किए थे. इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है ताकि कोई इसे भंग न कर पाए.
    17 अक्टूबर को सुबह 6.48 बजे चतुर्थी शुरू होगी, जो अगली सुबह 7.29 तक रहेगी.

    ये है पूजा और चंद्रर्शन का समय
    पूजा का मुहूर्त शाम : 5:50 से 7:06 सुबह
    व्रत समय: सुबह 6:21 से रात 8:18 बजे तक
    उपवास का समय : 13 घंटे, 56 मिनट है.
    चांद निकलने का समय : रात 8:18 बजे

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