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    जानिए क्या है शब-ए-बरात, क्यों खाया जाता है इस दिन हलवा?

    शब-ए-बारात को इस्लाम धर्म में इबादत की रात के तौर पर जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक महीने की 15 वीं तारीख को शब-ए-बारात मनाई जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बारात 9 अप्रैल गुरुवार को है.

    विधि

    शब-ए-बारात को इस्लाम धर्म में इबादत की रात के तौर पर जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक महीने की 15 वीं तारीख को शब-ए-बारात मनाई जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बारात 9 अप्रैल गुरुवार को है.

    मुस्लिम विद्वान बताते हैं इस रात आसमान में ईश्वर अगले वर्ष के सारे फैसले कर देता है. रात को इबादत कर रहे लोगों के गुनाह माफ होते हैं. शब-ए-बारात की पाक रात को इबादत कर के इंसान हर गुनाह से बरी हो सकता है.

    इस रात में मुस्लिम घरों में तरह-तरह के पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, कोरमा आदि बनाया जाता है. इबादत के बाद इसे गरीबों में तकसीम किया जाता है. एक तरह से शब-ए-बरात रमजान में रखे जाने वाले रोजे के लिए अपने आपको तैयार करना भी माना जाता है.

    इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार यह रात पूर्व के समय में किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली मानी जाती है. इसलिए इस रात को शब-ए-बारात के तौर पर जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि तौबा की इस रात को अल्लाह तआला अपने बंदों का पूरे साल का हिसाब-किताब करते हैं.


    इलाहाबाद, बमरौली मस्जिद के इमाम मोहम्मद लुकमान बताते हैं कि, 'इस रात को इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग अल्लाह की इबादत में मनाते हैं. साथ ही शब-ए-बारात की रात मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. शब का मतबल रात होता है और बरआत का अर्थ बरी होना होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. इस्लाम में यह रात बेहद फजीलत की रात मानी जाती है. इस रात को मुस्लिम दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, उनकी मगफिरत की दुआएं की जाती हैं.'

    वहीं ऑल इंडिया जमियत दावातुल मुसलमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कारी इसहाक गोरा का कहना है कि, मुकद्दस माह-ए-रमजान से ठीक पहले यानी शाबान-ए-मौअज्जम की 14 तारीख को शब-ए-बरात होती है. इस रात में कुरान की तिलावत तसबीह व नफली नमाज अदा कर दुआएं की जाती हैं. शब-ए-बरात का पर इबादत का कोई खास तरीका शरीयत से साबित नहीं होता है.' कारी गोरा के मुताबिक शब-ए-बरात पर खास तरीके से नमाज पढ़े जाने की बातें मनगढ़ंत हैं. इस बात का शरियत में कोई सबूत नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि शब-ए-बरात पर खासतौर पर हलवा खाने का भी शरीयत, कुरान में कोई सबूत नहीं है. ये लोगों की बनाई रस्में हैं. इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है. बरकत वाली इस रात में हर जरूरी और सालभर तक होने वाले काम का फैसला किया जाता है और यह तमाम काम फरिश्तों को सौंपे जाते हैं.


    करी इसहाक गोरा और इमाम मोहम्मद लुकमान दोनों का मानना है कि इस खास मौके पर सिर्फ हलवे खाने की कहानी मनगढ़ंत हैं. इसका शरीयत, कुरान, हदीस में कोई सबूत नहीं है. वह कोई और मौका था जब मोहम्मद पैगंबर का दांत शहीद हुआ था और उन्हें हलवा खिलाया गया था. जबकि कारी इसहाक गोरा इस बात पर जोर देते हैं कि शब-ए-बरात जैसी रातों में अपने घरों पर नफली इबादतों का अहतमाम करें. खिलाफे सुन्नत जैसे कामों से खुद को बचाते रहें. रातभर घूमना-फिरना, कब्रिस्तान के आसपास मेले जैसी स्थिति बनाना तकरीर व बयान कर लंबी लंबी मजलिसें लगाना जायज नहीं है. वहीं दोनों का कहना है कि शब-ए-बरात पर बच्चों व नौजवानों को बाइक पर स्टंट, पटाखे चलाने व हुड़दंग जैसे कामों से बचना चाहिए.
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