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    ढाबों पर खाना ऑर्डर करने से पहले कर लें यह काम, नहीं लगेगी चपत

    हम-आप अक्सर घूमने-फिरने जाते हैं. या किसी दूसरे जरूरी काम से भी हमारी यात्रा होती है. कभी फैमिली के साथ तो कभी दोस्तों के साथ. इस दौरान बस, टैक्सी या खुद की कार से का सहारा लेते हैं. यात्रा शानदार बनाने के लिए घर का खाना नहीं ले जाते हैं क्योंकि हाइवे के ढाबों पर बेहतरीन खाना मिलता है. जिनका स्वाद आपको बहुत भाता है. हाइवे के किनारे मिलने वालों पर कुछ चीजें का तो जवाब नहीं, लेकिन कुछ चीजें मूड खराब कर देती हैं.

    विधि

    हम-आप अक्सर घूमने-फिरने जाते हैं. या किसी दूसरे जरूरी काम से भी हमारी यात्रा होती है. कभी फैमिली के साथ तो कभी दोस्तों के साथ. इस दौरान बस, टैक्सी या खुद की कार से का सहारा लेते हैं. यात्रा शानदार बनाने के लिए घर का खाना नहीं ले जाते हैं, क्योंकि हाइवे के ढाबों पर बेहतरीन खाना मिलता है. जिनका स्वाद आपको बहुत भाता है. हाइवे के किनारे मिलने वालों पर कुछ चीजें का तो जवाब नहीं, लेकिन कुछ चीजें मूड खराब कर देती हैं.

    ऐसा ही एक वाक्या मेरे साथ हुआ. दरअसल, किसी काम से मेरा हरिद्वार जाना हुआ. इस 24 घंटे की यात्रा के दौरान में एक्सपीरियंस बहुत खराब रहा. जिसके बाद मुझे लगा कि इसे आपके शेयर किया जाना चाहिए. क्योंकि आप भी अक्सर किसी न किसी ट्रिप पर जाते हैं रोड साइड ढाबों-रेस्तरां पर खाना खाते हैं. इसके जरिए मैं यह बताने की कोशिश रहा हूं कभी-कभी हम सस्ती चीजों को कई गुना ज्यादा दाम पर खरीदते हैं या खरीदने को मजबूर होते हैं. जबकि अगर कुछ चीजों का ध्यान रख लिया जाए तो यह जेब पर भारी नहीं पड़ेगा.

    जब 20 रुपये की आइसक्रीम पड़ी 80 रुपये की
    मेरा टिकट वॉल्वो में था. लिहाजा बस सहारनपुर के पहले एक बड़े रेस्टोरेंट पर रुकी. अमूमन हर बस वालों का एक रेस्टोरेंट या ढाबा फिक्स होता है. बस से उतरने के बाद मैंने आइसक्रीम ली. एक कप आइसक्रीम की कीमत 83 रुपये थी, इसमें इसकी क्वांटिटी सिर्फ 72 ग्राम थी. यानी जो कप 10 रुपये का मिलता है उसके लिए 80 से ज्यादा रुपये खर्च करने पड़े. अगर कहीं पूरी फैमिली आइसक्रीम खाने को बोले तो बिल हजार रुपये से ऊपर तक जा सकता है. इसलिए मेरा सुझाव है कि अगर आप किसी ऐसी ट्रिप पर जाते हैं तो आइसक्रीम का ब्रिक या बॉक्स ले लें. इसे पैकेट बंद आइसक्यूब के साथ रखें. ऐसा करने से यह पिघलेगी नहीं. आप चाहें तो छोटे-छोटे कप आइसक्रीम भी ले सकते हैं.

    ढाबों पर मिलने वाली पीली दाल का खेल
    अमूमन जब मैं किसी ट्रिप पर ज्यादा हूं तो तली-गील चीजें खाने से बचता हूं. ये मेरी व्यक्तिगत पसद है. हरिद्वार के एक होटल खाने के लिए मैंने दाल तड़का, दही, रोटी, चावल ऑर्डर दिया. जब टेबल पर दाल आई तो मुझे कुछ अलग लगी. मैंने एक चम्मच खाकर देखी तो समझ आया कि यह तो पीली दाल नहीं. मुझे मटर की दाल जैसा स्वाद आया. होटल संचालक से पूछने पर उसने बताया कि यहां तुअर की दाल नहीं मिलती. सभी मटर की दाल को पीली दाल बताकर दे देते हैं. ऐसे ही लौटते वक्त खाना खाने के लिए ढाबे पर रुका. वहां भी दाल के साथ वही खेल हुआ जिसका मुझे डर था. इतना ही नहीं सलाद के नाम पर आधी प्याज और 4 खीरे की स्लाइस के नाम पर 30 रुपये वसूल लिए गए. और सलाद के बारे में आपको ये पहले यह नहीं बताया जाता है कि इसके भी पैसे लिए जाएंगे. वहीं टेबल पर रखें पानी की बॉटल तय कीमत से ज्यादा रेट में दी जाती है.

    2 होटल और 2 ढाबों पर खाने के बाद मेरी समझ ऐसी बनती है कि इन जगहों पर लूट ज्यादा होती है. खाने का स्वाद कैसा है ये तो खाने वाले ही जानते हैं. कोई ऑप्शन न होने पर और भूख लगने पर हम पैसे नहीं देखते हैं और किसी तरह पेट भरने के लिए दोगुना-तिगुना पैसे खर्च देते हैं. इसलिए अगर लूट से बचना चाहते हैं तो खाने का ऑर्डर देने से पहले सब चीज के बारे में पहले से ही पूछ लें.

     

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