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    ये है भगवान को छप्पन भोग चढ़ाने के पीछे की मान्यता

    अक्‍सर हम 56 भोग की बात करते या सुनते रहते हैं. इसे भोजन की सहजता और समृद्धि से भी जोड़कर भी देखा जाता है. लेकिन, क्‍या आप जानते हैं इन 56 प्रकार के व्‍यंजनों में क्‍या-क्‍या शामिल होता है. वैसे तो भगवान कृष्ण को ही छप्पन भोग चढ़ाने की महत्ता ज्यादा है. क्योंकि इसे श्री कृष्ण को ही अर्पित किया जाता है, लेकिन भक्तगण महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान भोलेनाथ को भी चढ़ाते हैं. आइए जानते हैं कि छप्पन भोग चढ़ाने के पीछे क्या मान्यता है और इसमें कौन-कौन से पकवान भगवान को अर्पित किए जाते हैं.

    विधि

    अक्‍सर हम 56 भोग की बात करते या सुनते रहते हैं. इसे भोजन की सहजता और समृद्धि से भी जोड़कर भी देखा जाता है. लेकिन, क्‍या आप जानते हैं इन 56 प्रकार के व्‍यंजनों में क्‍या-क्‍या शामिल होता है. वैसे तो भगवान कृष्ण को ही छप्पन भोग चढ़ाने की महत्ता ज्यादा है. क्योंकि इसे श्री कृष्ण को ही अर्पित किया जाता है, लेकिन भक्तगण महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान भोलेनाथ को भी चढ़ाते हैं. आइए जानते हैं कि छप्पन भोग चढ़ाने के पीछे क्या मान्यता है और इसमें कौन-कौन से पकवान भगवान को अर्पित किए जाते हैं.
     
    ऐसा कहा जाता है कि गोकुल धाम में जब बालकृष्ण अपनी यशोदा मां के साथ रहते थे तब उनकी मैय्या उन्हें प्रतिदिन आठ पहर अर्थात कुल आठ बार खाना खिलाती थीं. एक बार जब इंद्रदेव ने गोकुल पर अपनी बारिश का कहर बरपाया था तब श्री कृष्ण जी सात दिनों तक बिना कुछ खाए उस गोवर्धन पर्वत को एक ऊंगली पर उठाया था. जब बारिश शांत हो गई और सारे गोकुलवासी और उनके घरवाले पर्वत के नीचे से बाहर निकले. इसके बाद सभी को यह एहसास हुआ कि कान्हा ने सात दिनों से कुछ नहीं खाया है.
    (ये हैं महाशिवरात्रि व्रत के खास पकवान, स्वाद मिलेगा मजेदार)
    तब यशोदा और सभी गोकुलवासियों ने कृष्ण जी के लिए हर दिन के आठ पहर के हिसाब से सात दिनों को मिलाकर कुल छप्पन प्रकार (7 दिन X 8 पहर = 56) के पकवान बनाए थे. इसके साथ ही सभी गोपियों ने लगातार एक माह तक पवित्र यमुना नदी में स्नान किया और मां कात्यायिनी देवी की पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना की ताकि उन्हें पतिरूप में श्रीकृष्ण ही मिलें. श्रीकृष्ण ने यह जानकर उन सभी को उनकी इच्छापूर्ति होने का आश्वासन दिया और इसी खुशी के चलते उन्होंने श्रीकृष्ण के लिए छप्पन भोग बनाए.

    जाने भगवान शिव को चढ़ाए जाने 56 भोगों के नाम
    1. रसगुल्ला, 2. चन्द्रकला, 3. रबड़ी, 4. शूली, 5. दही, 6. भात, 7. दाल, 8. चटनी, 9. कढ़ी, 10. साग-कढ़ी, 11. मठरी, 12. बड़ा, 13. कोणिका, 14. पूरी, 15. खजरा, 16. अवलेह/आंवला, 17. वाटी, 18. सिखरिणी, 19. मुरब्बा, 20. मधुर, 21. कषाय, 22. तिक्त, 23. कटु पदार्थ, 24. अम्ल (खट्टा पदार्थ), 25. शक्करपारा, 26. घेवर, 27. चिला, 28. मालपुआ, 29. जलेबी, 30. मेसूब, 31. पापड़, 32. सीरा, 33. मोहनथाल, 34. लौंगपूरी, 35. खुरमा, 36. गेहूं दलिया, 37. पारिखा, 38. सौंफ़लघा, 39. लड्डू, 40. दुधीरुप, 41. खीर, 42. घी, 43. मक्खन, 44. मलाई, 45. शाक, 46. शहद, 47. मोहनभोग, 48. अचार, 49. सूबत, 50. मंड़का, 51. फल, 52. लस्सी, 53 मठ्ठा, 54. पान, 55. सुपारी, 56. इलायची.
    (आज के दिन शिव जी को जरूर चढ़ाएं इन चीजों का प्रसाद)

    भोग में दूध, दही और घी की प्रधानता
    ब्रज के मंदिरों में दूध, दही और घी से विभिन्न प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं. इस क्षेत्र की अपनी विशेषता है. इसी कारण छप्पन भोग में दूध, दही और घी से ज्यादातर पकवान बनाएं जाते हैं.
    (महाशिवरात्रि पर न खाएं ये चीजें, नहीं तो कर बैठेंगे नुकसान)

    ब्रज के मंदिरों में छप्पन भोग, अन्नकूट या कुनवाड़ों में एक ही वस्तु को जिन विविध रूपों में बनाया जाता है, वैसा कहीं और नहीं बनता. मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में आज भी अनेक प्रकार की पूरियां प्रतिदिन भोग में आती हैं. ठाकुरजी को अर्पित भोग में दूध, घी, दही की प्रधानता होती है, लेकिन इनको कभी भी बासी भोजन अर्पित नहीं किया जाता है. छप्पन भोग बनाते वक्त एक बात खास तौर ध्यान रखनी चाहिए वो यह कि श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाने वाले भोग में तुलसी दल का प्रयोग होता है. जबकि भोलेनाथ के लिए बनने वाले 56 भोग में तुलसी दल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

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