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    जितना खाने में मीठा, उतनी ही अलग है इस आम की कहानी

    गर्मी को एक तरह से आम का सीजन भी जाता है. सभी को आम पसंद होते हैं. भारत में मालदा, दशहरी, लंगड़ा, तोतापरी से लेकर कई देसी वैरायटी भी हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा होती है अल्फांसो की. भारत में पायी जाने वाली आम की प्रजातियों में अल्फांसो को सबसे बेहतरीन आम माना जाता है. अल्फांसो नाम अंग्रेजी भाषा का दिया हुआ नाम है. महाराष्ट्र में इसे 'हाफूस' कहा जाता है तो कर्नाटक में 'आपुस' और गुजराती में 'हापुस. कहते हैं. विदेशों में पहली पसंद होने के कारण यूरोपीय भाषा में भी इसे एक अलग नाम 'अलफानसो' के नाम से जाना जाता है.

    गर्मी को एक तरह से आम का सीजन भी जाता है. सभी को आम पसंद होते हैं. भारत में मालदा, दशहरी, लंगड़ा, तोतापरी से लेकर कई देसी वैरायटी भी हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा होती है अल्फांसो की. भारत में पायी जाने वाली आम की प्रजातियों में अल्फांसो को सबसे बेहतरीन आम माना जाता है. अल्फांसो नाम अंग्रेजी भाषा का दिया हुआ नाम है. महाराष्ट्र में इसे 'हाफूस' कहा जाता है तो कर्नाटक में 'आपुस' और गुजराती में 'हापुस. कहते हैं. विदेशों में पहली पसंद होने के कारण यूरोपीय भाषा में भी इसे एक अलग नाम 'अलफानसो' के नाम से जाना जाता है.

    दरअसल, अल्फांसो एक पुर्तगाली सैनिक की भारत को देन है. ऐसा माना जाता है कि 'अल्फानसो दी अलबुकर्क' नामक एक पुर्तगाली सैनिक को बागवानी का बहुत शौक था और उसने ही गोवा में आमों की कई प्रजातियां उगाई थीं. प्रयोग के तौर पर उसने एक पौधे पर आम की कई किस्मों को ग्राफ्टिंग के जरिये उगाने की कोशिश की थी जिसमें वह सफल भी हुआ. इसमें वह अलब्रुक सफल हुआ और उसी ग्राफ्टिंग वे पेड़ से अल्फांसो आम की जन्म हुआ.
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    वजन में 150 से 300 ग्राम के बीच के इस आमों के राजा की हर बात निराली होती है. इसका मीठा-रसीला स्वाद और महकती खुशबू सबसे अलग होता है. कहते हैं एक घर में खाए जाना वाला अल्फांसो पूरे मोहल्ले को अपने होने का पता दे देता है. पकने के एक हफ्ते बाद भी यह आम खराब नहीं होता है. इसी गुण के कारण इसे विदेशों में भेजा जाता है.

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    किलो में नहीं दर्जन में बिकता है
    इसकी कीमत भी आम नहीं है. यह एकलौता ऐसा आम है जो किलो के बजाय दर्जन के हिसाब से बिकता है. आमों के सरताज को हर भूमि और हर प्रकार की जलवायु पर नहीं उगाया जा सकता है. केवल महाराष्ट्र के कोंकण इलाके के सिंधुगन जिले में देवगढ़ तहसील की भूमि और जलवायु ही आमों के लिए सही है. बहुत से लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

    अल्फांसो की शेल्फ लाइफ, उसकी शहद जैसी मिठास और दूर तक जाने वाली खुशबू सब आमों में सबसे अच्छी होती है. यही कारण इसे विदेशियों की पहली पसंद बनाता है. अल्फांसो की दीवानगी की हद तो तब हो गई थी जब 2014 में यूरोपीय संघ ने भारत से अलफोंसो के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी. यह मामला ब्रिटेन की संसद में भी उठाया गया और 2016 में यह प्रतिबंध हटा लिया गया.

    करोड़ों में है अल्फांसो का कारोबार
    अप्रैल, मई में फलने वाला यह आम जून, जुलाई तक चलता है. महाराष्ट्र के कोंकण इलाके के सिंधुगण जिले की देवगढ़ तहसील के 70 गांवों में 45 हजार एकड़ जमीन पर अल्फांसो की बागबानी होती है. देवगढ़ समुद्र तट से 200 किलोमीटर अंदर पड़ता है. यहां पैदा होने वाले अल्फांसो सब से बेहतर किस्म के होते हैं. देवगढ़ के किसान अल्फांसो आम को ऑनलाइन भी बेचते हैं.

    यूरोप से सिंगापुर तक होती है सप्लाई
    इतना ही नहीं अल्फांसो महाराष्ट्र के ही रत्नागिरी, गुजरात के वलसाड़ और नवसारी में सबसे अधिक पैदा होता है. देश से हर साल करीब 200 करोड़ का अल्फांसो आम केवल यूरोपीय देशों को निर्यात होता है. इसके अलावा दुबई, सिंगापुर और मध्य एशिया के दूसरे देशों में भी यह आम जाता है. हर साल करीब 50 हजार टन अल्फांसो आम का उत्पादन होता है. इसका मुख्य कारोबार नवी मुंबई के वाशी स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति से होता है. हर साल करीब 600 करोड़ का अल्फांसो का कारोबार होता है.

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